ग़ज़ल(1)वज़्न-221 2121 1221 212
हासिल जहां में कुछ नहीं अच्छा किए बगैर
रुकना नहीं है ख़्वाब को पूरा किए बगैर
वो तो पहुँच गया है सियासत में आजकल
कैसे रहेगा देश से धोखा किए बगैर
शर्मिंदगी नहीं हैं उन्हे कम लिबास में
जो लड़कियाँ हैं घूमती पर्दा किए बगैर
ख़ुदग़र्ज दिलरुबा मिली तो है ही लाज़मी
जायेगी कैसे बेवफ़ा रुसवा किए बगैर
अच्छी तो चल रही है दुआओं से ज़िन्दगी
जीना है अपनी सोच को नीचा किए बगैर
ऐ मौज यूँ सलाह सभी चाहने लगे
हो जायें मालामाल वो धंधा किए बगैर
द्वारिका प्रसाद लहरे”मौज” कवर्धा छत्तीसगढ़
मैं द्वारिका प्रसाद “लहरे” एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का हूँ।जीवन में बहुत संघर्ष किया परंतु हार नहीं माना।आज मैं कठिन परिश्रम माता-पिता और गुरूओं के आशीर्वाद से एम.ए.बी.एड करके व्याख्याता हिन्दी के पद शा.उ.मा.वि.इन्दौरी में पदस्थ हूँ।
पढ़ाई के समय से ही मुझे गीत संगीत और लेखन में रूचि रहा है। मैं फेसबुक में गीत गज़ल कविता लिख कर पोस्ट करने लगा।फेसबुक से आ.इंजीनियर गजानंद पात्रे सत्यबोध जी (बिलासपुर) मेरी रचनाओं को पढ़कर मुझे छंद के छ परिवार में जोड़वाए।जहाँ से मुझे छंद सीखने का सौभाग्य मिला।परम आ.अरुण कुमार निगम गुरुदेव (दुर्ग) जो छंद के छ के संस्थापक हैं इनके मार्गदर्शन में छंद सीख रहा हूँ । छंद के छ परिवार में जुड़ने के बाद छंदकार आ.बोधनराम निषाद गुरुदेव व्याख्याता(सहसपुर लोहारा) के मार्गदर्शन में मैं बहर में गज़ल सीखना शुरू कर दिया।गज़ल सीखाने में छंदकार आ.ज्ञानु दास मानिकपुरी गुरुदेव स्वाथ्य विभाग(बोड़ला),मेरे मित्र छंदकार सुखदेव सिंह अहिलेश्वर व्याख्याता(गोरखपुर) इनका विशेष योगदान रहा है।
मेरी छंद साधना में मेरी पत्नी संजना लहरे पुत्र सौगात लहरे,पुत्र अमन लहरे का भी सहयोग मिला।
यह मेरी पहली गज़ल संग्रह है “तीर-ए-नज़र”
आप लोगों के हाथों में है शायद पसंद आएगी।
आप सब का सुझाव सादर आमंत्रित है।
आपका अपना
ग़ज़लकार-
डी.पी.”लहरे”
व्याख्याता (हिन्दी)
बायपास रोड़ कवर्धा।
मोबाइल-7898690867